जल गत्यतात्मक है !
जल की प्रकृति होती है -शीतलता, सौम्यता और सरलता । जल सभी रूप मे र्संपूर्ण होता है।जल की तरल अवस्था लोगों को शक्ति देती है ,जीवन के हर स्तर को महत्वपूर्ण बनाती है।
विश्व के महासागर पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग घेरे हुए हैं।पृथ्वी पर पानी की कुल मात्रा लगभग 1400 मिलियन घन किलोमीटर है जिससे पृथ्वी पर पानी की 3000 मीटर मोटी परत बिछ सकती है। इसमें लगभग 75.2 प्रतिशत धुव्रीय प्रदेशों में हिम के रूप में विद्यमान है और 22.6 प्रतिशत भूजल के रूप में विद्यमान है। शेष जल झीलों, नदियों, वायुमंडल, नमी, मृदा और वनस्पति में मौजूद है।
सचेत- वाकर की एक विशेष हिंदी श्रृंखला इसी क्रम में एक प्रयास है।
इसकी शुरुआत में यह एक यात्रा विवरण का माध्यम था ।बढ़ते अनुभव के साथ इसने नया रूप ग्रहण किया॥
आज ही, किसी ने व्यंग किया कि “आपका तो यात्रा ब्लॉग है ना? फिर उसमें अन्य प्रकार की कहानियां क्यों??
ऐसा तो नहीं कि आप मिठाई दुकान पर सब्जी बेचने बेचने का कार्य कर रही है।”
इस बात की गंभीरता पर केवल दिल -खोलकर हंस लिया मैंने! फिर विचार आया कि इसे लिखकर स्पष्टीकरण दिया जाए।
हमारी यात्रा भी जल समान है ।जल वाषप बन कर वायुमंडल में जाता है, सअङ्नित होकर है , बादल बनता है। वास्तविक जीवन के पहलु मस्तिष्क पर प्रश्न के रूप में रहते हैं॥ जब तक उन्हें शब्दों में उतार कर उत्तर स्वरूप ना दिया जाए॥
जल संपूर्ण होता है ।एक लेखक अपने विचारों और लेखनी के माध्यम से विचारो को प्रतिबिंबित करता है ,कुछ पहलुओं को जीवित करता है।
ऐसी ही अभिव्क्ति हैं ,सचेत – वॉकर -ब्लॉक
Those hindi words are building up my vocabulary.
Loved the content.
You have my appreciation ,keep coming and reviewing !