पेरिस की पिघलती पॉट संस्कृति
पेरिस एक वैश्विक नगरी के रूप में स्थापित हो चुका है। लगभग यहां मानव जाति के सभी लोगों का संगम है । यहां घूमने का चौतरफा आनंद है ,कि यहां पर आपको अफ्रीकी ,अमेरिकी, मध्य पूर्व एशिया और संपूर्ण यूरोप का आनंद उठाने को मिलता है।
फ्रांस की संस्कृति सभी का आलिंगन करते हुए नजर आती है, जिसका अंदाजा यहां के खाने की संस्कृति और रोजगार के अवसर में श्वेत और श्याम वर्ण को एक से अधिकार से होता है। आज हमारा पेरिस में का पहला दिन है।परिभ्रमण का एक अच्छा माध्यम है सार्वजनिक परिवहन जिसकी यहां कई विधियां हैं जैसे मेट्रो बस ट्रेन और इलेक्ट्रिकवाहन ।
हमने मेट्रो का रास्ता दिया लिया लियामेट्रो की टिकट लेने के लिए दो विधियां हैं ,या तो क्रेडिट कार्ड लगाकर टचस्क्रीन से या दूसरा खिड़की पर बैठे एक श्वेत स्त्री से कुछ जानकारी प्राप्त करकें यहां पर १० की टिकट का बंडल है। जो कि 14 यूरो का है, एक टिकट १.८ की है, अन्यथा मासिक पास है जो कि 80 यूरो में मिलता है ,मैं और मेरे पति ने यहां से १० टिकट लेकरऔर एफिल टावर जाने का रास्ता पूछा ।उस मेट्रो की महिला ने बहुत ही अच्छे से (बोनजोर )बोलते हुए हमारा स्वागत किया हमें मेट्रो का मैप पर अपनी कलम से निशान बनाते हुए बताया कि आप( गायतै ) स्टेशन से कैसे एफिल टावर के पास वाले स्टेशन तक जाना है ।
मेट्रो में पहली बार पिघलते पॉट संस्कृति और सामने आई यहां कोने में खड़ी लड़की पीली जैकेट,घुटने तक के बुट,बैग के साथ फैशन की देवी लग रही थी थी। तो वहीं साथ का (अश्वेत) लड़का लंबे काले घुंघराले बाल ,हाथ में टैटू और गिटार इसमें में कुछ कुछ धुन बनाता और उसको सुनाता और वो मंत्र मुक्त हो जाती। खिड़की से बाहर पैरिस के नए पुराने दुकान, मकान, से होता हुआ हमारा रास्ता( बिर- हाकीम) के मेट्रो स्टेशन पहुंचा ।
यहां पर जैसे हम लोगों को आश्चर्यचकित निगाहों से देखते ,वैसे ही -वह भी ,मुझे ऐसे देखते चेहरे पर काली बिंदी, लाल सिंदूर और आंखों में काजल वाली लड़की को ऐसे ही देखते।
हम बाहर निकले, हमने फोन पर जीपीएस लोकेशन में एफिल टावर लिखा और वह दर्शाने लगा कि 5 मिनट से चलकर आपको मिल जाएगा ।
थोड़ी दूरी चलने के साथ ही हमें उस महान, शक्तिमान, बलशाली के दर्शन होने लगे और वास्तविकता में मन में खुशी की तरंगे आने लगी ।
मेरे पति इसको जय हो एफिलमैया !! कह कर प्रणाम किए जैसा कि वह तीसरी बार आ रहे थे और उनके लिए यह देवी दर्शन के समान था और मैं अभी खुशी आश्चर्य, अनगिनत भावनाओं में डूबी हुई थी ।
तभी आसपास के लोगों में एक से कपड़े, टीशर्ट या नंबर की जर्सी पहनकर दौड़ते भागते लोग नजर आए लगता है आज कुछ है ।
फिर थोड़ी देर में पता चला आज यहां एक मैराथन दौड़ है, जो एफिल टावर के सामने हो रही है। आगे का रास्ता सोचना ही नहीं पड़ा हम भीड़ के पीछे चलते चले गए ,फिर क्या हम जैसे ही एफिल टावर के पास पहुंचे हमें वहां पर अफ्रीकी मूल के विक्रेता नमस्ते ! आप इंडिया से हैं क्या ? कह कर बुलाने लगे।
आश्चर्य था, कि यह नमस्ते बोल रहे थे ! फिर हमने भी इनकी तरफ नमस्ते का इशारा किया और आगे बढ़ गए।( यहां पर ये फ्रिज मैग्नेट, एफिल टावर के प्रारूप वाली चाबी रिंग और भांति भांति के स्मृति चिन्ह बेचते हैं) फिर क्या थोड़ा आसपास घूम कर अपने ज्ञान को और बढ़ाया फिर पता चला कि, इसे बनाने में 18000 टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ है और इसमें ढाई करोड़ रीवेट और 7000 टन लोहा इस्तेमाल हुआ है।
इसको बनाया गया था फ्रांसीसी क्रांति के 100 वर्ष पूरे होने पर ताकि इससे फ्रांस की औद्योगिक ताकत का विश्व को पता चल सके।
टावर के पास जाने के टावर की निगरानी और सुरक्षा बढ़ा दी गई है । इसे मेटल डिटेकटर और अपने सामान की जांच करा कर अंदर पहुंचना होता है ।कतार में लगे लगे मात्र आधे घंटे में भी 500 लोगों तक पहुंच गई।कतार में लगे लगे पता चला कि हमारे आगे एक ब्रिटिश महिला अपनी बच्ची को उसके जन्मदिन के उपहार के रूप में पेरेस घुमाने लाए हैं और बच्ची सबसे ऊंची मंजिल पर जाने के लिए जिद कर बैठी है। बच्ची में हिम्मत ही पर मां डर रही थी कि कैसे जाना होगा।
जब हम भी टिकट घर तक पहुंचे तो देखा पहली फ्लोर के लिए 10 यूरो ,दूसरी मंजिल के लिए 15 यूरो और सबसे ऊंची तीसरी मंजिल तक के लिए 25 यूरो का टिकट था ।फिर मेरे पति ने सोचा कि यह जिंदगी में एक बार मिलने वाला मौका है इसलिए तीसरी मंजिल तक की दो टिकट ले ली। कतार में ही आज ही लगे हुए हैं इस बात का आनंद और बढ़ रहा था कि क्या वाकई में हम एफिल टावर के अंदर जा सकते हैं ? हां जवाब के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। फिर जब 2 बच्चों को एक ही रंग की चमकीली जैकेट पहने हुए देखा तो मैंने उनके अभिभावक से पूछा कि क्या ये जुड़वा है तो उत्तर मिला नहीं मैं 2 वर्ष का फर्क है ।मेरे मन में विचार आया अच्छा यह हमारे यहां के एक थान के कपड़े से काटकर कई सारी फ्रॉक के बनवा देते हैं उसका यह विदेशी अवतरण है।
टावर के अंदर जाने के लिए एक बार फिर से दोबारा चेकिंग हुई और लिफ्ट का दरवाजा खुला, उसमें एक बार में 50 लोगों की सीमा थी और एक सुंदर फ्रांसीसी लड़की बोंजौर ( अभिवादन) करते हुए, हम सब को ऊपर ले गई।
लिफ्ट से निकलने के साथ पहले मैंने अपने हाथों से उस अद्वितीय टावर को छुआ और देखा कि वाकई में यह सपना था जो हम जी रहे थे फिर चारों तरफ नजरें दौड़ाई और दूर-दूर तक पेरिस के आदित्य दृश्य दिखाई देते थे, सामने में चाम-दे- मार्च का प्रांगण था ,नदी सीन की सुंदरता और भी बढ़ जाती थी उसमें सूर्य की किरणों का दर्शन होते , साथ ही बड़ी बड़ी नाव गुजरती थी , दूसरी तरफ कहीं दूर गगनचुंबी मौनपरनास दिखाई देता था।
हर मंजिल पर दूरबीन लगी हुई थी जिसमें एक यूरो उपयोग करके दूरदर्शन का मनोरंजन किया जा सकता था। इस दृश्य को अपने कैमरे में कैद करने का आनंद लेते हुए कुछ 15 मिनट के बाद हम दूसरे मंजिल पर आए। यहां ऊंचाई और बढ़ गई यहां पर कुछ विश्व प्रसिद्ध रेस्टोरेंट्स खाने के लिए ,दिनभर बिताने के लिए ब्रेकफास्ट लंच डिनर तीनों का इंतजाम था ,कैंडल लाइट की व्यवस्था की जा सकती थी ,यही वह प्रपोजल स्थल है ,जहां पर काफी सारी हिंदी पिक्चरों की शूटिंग हुई है। इसके अंदर का म्यूजियम है जिसमें अभी तक टावर की तकनीक, अन्य जानकारी थी । इसके बाद सबसे ऊंची तीसरी मंजिल पर गए, निकलने के साथ ही ठंड और हवा का झोंका और ज्यादा होने लगा, यहां पर एक बार फिर वह ब्रिटिश महिला मिल गई हम दोनों ने एक दूसरे की तस्वीरें खींची और बच्ची से पूछा उसे आनंद आ रहा है उसने हां बोला ।
यहां एक शैंपेन बार् है जो कि अपनी विजय को दर्शाने के लिए, यहां पर युगल जोड़ी अपने प्रदर्शन करते हुए मिल जायेंगे और हो भी क्यों ना आखिर गुस्तो एफिल इसके आर्किटेक्चर इंजीनियर शुरू से अंत तक इस विशालकाय लोहे के आकार को सार्थक ही तो करना चाह रहे थे ।
और वह हो गया क्योंकि यह प्रेम का सच्चे प्रेम का प्रतीक बन गया यहां आकर लोग जिंदगी भर साथ निभाने की कसमें खाते हैं।
हमारे होटल से ७ मिनट की दूरी पर कैटाकॉन्ब कंकाल का ठिकाना था जो कि भुलोअक में म्रितक्लोक के दर्शन को प्रत्यक्ष कर आता था ।यहां मेहराब रूपी छत में कंकाल ओं का लगभग 60 लाख से ज्यादा मानव अवशेष व्यवस्थित कर के रखे गए थे यह 1774 में बना एक चुना पत्थर की खदान को श्मशान में परिवर्तित किया गया था, जो कि शहर के ऽह्रदय विदारक इतिहास को और प्रबंधन कौशल को भी दर्शाता था। रूह तक कांप जाने वाली स्थिति थी। जहां आप मानव का काल के कपाल, पैरों,हथ की हड्डियां को दीवार के रूप में देखते हैं। यहां पर भोले बाबा के अघोरी रूप के दर्शन होने लगे,
इसी क्रम में स्वर्ग गामी जनसमूह को स्मरण करते हुए अगला पङाव पन्तथेओन् में हुआ यह समाधि अवशेष है जहां देशभर के प्रसिद्ध,महत्वपूर्ण लोगों को स्थान मिला हुआ है।
यह समाधि जिसके बाहरी दीवारों पर फ्रांस के (ईसाई धर्म और राजतंत्र) के आरंभ की गाथा है ।जहां स्थान मिलता है, फ्रांस में अभूतपूर्व कार्य करने या सहयोग देने वालों को, इसी में वॉलटैर जो कि एक ज्ञानोदय के समय के लेखक दार्शनिक थे। और तर्कसंगत ,प्रबुद्धता वकालत की थी , भाषा की आजादी की और कहा था कि “गिरजाघर और राज्य को पृथक”शक्ति का पृथक्करण करने की वकालत की थी यहां अनगिनत लोगों की
समाधि यह सीख , कि आपको मृत्यु के बाद कैसे जीना है, कैसे अमर होना है, इसके यहां मिलती है।
जब हमारे देश में दिवाली का उत्सव मनाया जा रहा
था।
इसी क्रम में जब हमारे देश में दिवाली का उत्सव मनाया जा रहा था ,तो उस दिन कुछ खालीपन का आभास हो रहा था, उस खालीपन को भरने के लिए सेंटर पोम्पिदोउ संग्रहालय गए। जो की मॉडर्न आर्ट का महाकुंभ गऐ,
यह ५ एकड़ में फैला हुआ चार तल वाला संग्रहालय जहां पर १२वीं से लेकर २१ वी शताब्दी तक के कलाकारों की और उसकी कलाकृतियों को सजाए हुए हो गए हैं ५५ फुट के चेहरे की आकृतियां ,फिर उस पर कोई भी प्रकट ना होने वाले भाव, साधारण आदमी को जान पड़ेगा कि यह धन और समय की क्षति है। परंतु यह आधुनिक कला का रूप है ।यहां पर लोहे की कुर्सियों जिसे कहीं स्थान नहीं मिलता यहां सम्मान के साथ पेंटिंग के रूप में दीवारों से लगी हुई है। पुराना टूटा हुआ वायलिन को रंग बिरंगी रंगों में नया जीवन प्रदान किया गया है। यहां ऐसा लगा जैसे कि, घर की कोई भी पुरानी वस्तु को नया आयाम दिया जा सकता है ।और कहा जा सकता है, कि यह तो आधुनिक कला का नया रूप है, आधुनिक कला के रूप में यह अपने आप में विस्तृत विषय है इस पर चर्चा की जाएगी यहां पिकासो कि कलाकृती भी है जो कि जीवन के प्रतेक भाग को दर्शति है।
एक हफ्ते बाद हमारे रहने के पेरिस में रहने की हमारे स्थान में उन्नति करण वह और हम पैरिस के सबसे उच्च वर्गीय इलाकों में आ गए जहां पर घर से बाहर निकलने के साथी एफिल टावर के दर्शन होते और ५०० मीटर की दूरी पर यूनेस्को था, और दाहिने हाथ पर १ किलोमीटर जाने पर इनवेलिड आर्मी म्यूजियम था। इसे कहते हैं “गुरुकृपा या बड़ो के आशीर्वाद से प्राप्त होने वाली वस्तु “।हमारा प्रारब्ध था, कि हम पैरिस आते परंतु इसी अपार्टमेंट में आना जहां आधुनिकता और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल था धन्यवाद मेरे गुरु को और सभी हितैषीओ को
अगले दिन ही विश्व प्रसिद्ध लूंव फ्रेंच उच्चारण में लोग कहते हैं यह घर है ।मोनालिसा का लूंव , के बारे में तो यह कहा जाता है, कि यहां पर पूरा म्यूजियम घूमने में ९० दिन लग जाएंगे ,अगर प्रतिकृति को केवल ३० सेकंड भी देखा जाए। तो इसकी प्राचीन कला के पुजारी इस युग में कम नहीं है ।इसी तरह गौरवशाली कला के अनुकरण पर बनाई गई मूर्तियां ,आधुनिक कला के मापदंडों से दूर उस प्राचीन कला को दोहराते हैं ,और हमारे को इतिहास में ले जाती हैं ।
यहां पर एंटीक इस्लामी कला, इजिप्शियन, ग्राफिक, कार्ड, मूर्तियां और कला का संगम था अफ्रीका एशिया अमेरिका और अन्य समुद्री देशों की थी झरोखा था। पिछले ८००० वर्षों को सजीव कर देने वाला ।जहां विश्व प्रसिद्ध लियोनार्डो द विंची की मोनालिसा थी। मोनालिसा कृति जो अपने आप में ही रहस्यमई मुस्कान और आंखों से कुछ जताना चाहती थी ध्यान देने की बात है कि इनका चेहरा अत्यंत ही मासूम लगता है ।और ऊपर की भौहें ना होने का एहसास ही नहीं होता है ।
यह कृति आज भी लेखकों को कवियों को मोहित कर दी है पता चला कि यह पेंटिंग एक बार म्यूजियम संग्रहालय से गायब हो गई थी 2 सालों के लिए और इसी के किसी ने इसी में इसकी महत्ता और भी बढ़ा दी।